वांछित मन्त्र चुनें

पीवो॑अश्वाः शु॒चद्र॑था॒ हि भू॒तायः॑शिप्रा वाजिनः सुनि॒ष्काः। इन्द्र॑स्य सूनो शवसो नपा॒तोऽनु॑ वश्चेत्यग्रि॒यं मदा॑य ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pīvoaśvāḥ śucadrathā hi bhūtāyaḥśiprā vājinaḥ suniṣkāḥ | indrasya sūno śavaso napāto nu vaś cety agriyam madāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पीवः॑ऽअश्वाः। शु॒चत्ऽर॑थाः। हि। भू॒त। अयः॑ऽशिप्राः। वा॒जि॒नः॒। सु॒ऽनि॒ष्काः। इन्द्र॑स्य। सू॒नो॒ इति॑। श॒व॒सः॒। न॒पा॒तः॒। अनु॑। वः॒। चे॒ति॒। अ॒ग्रि॒यम्। मदा॑य ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:37» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पीवोअश्वाः) मोटे घोड़ों (शुचद्रथाः) पवित्र वाहनों और (अयः शिप्राः) लोह के सदृश ठुड्ढी और नासिकावाले घोड़ों से युक्त (सुनिष्काः) सुन्दर सुवर्ण के आभूषणोंवाले (वाजिनः) वेगयुक्त आप लोग (हि) जिससे जीतनेवाले (भूत) हूजिये। और हे (नपातः) नीचे गिरना अर्थात् नीच दशा को प्राप्त होना जिसके नहीं उस (शवसः) बलवान् (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले राजा के (सूनो) पुत्र ! आप (मदाय) आनन्द के लिये (अग्रियम्) प्रथम हुए सुख और पुरुषार्थ को करो और जैसे हम लोगों से (वः) आप लोगों का सुख (अनु, चेति) जाना जाता है, वैसे आप लोगों को हम लोगों की सुखवृद्धि का प्रयत्न करना चाहिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषो ! आप लोग विस्तीर्ण बल से युक्त और सेना के अङ्गों के सहित विराजमान और ऐश्वर्य्य से शोभित हुए राज्य के आनन्द की वृद्धि के लिये पुरुषार्थ करो, जिससे शत्रुजन आप लोगों का तिरस्कार करने को समर्थ न हो सकें ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे पीवोअश्वाः शुचद्रथा अयःशिप्राः सुनिष्का वाजिनो यूयं हि विजयिनो भूत। हे नपातः शवस इन्द्रस्य सूनो ! त्वं मदायाग्रियं पुरुषार्थं कुरु यथाऽस्माभिर्वः सुखमनु चेति तथा युष्माभिरस्मत्सुखवृद्धिः प्रयत्येत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पीवोअश्वाः) पीवसः स्थूला अश्वा येषान्ते (शुचद्रथाः) शुचन्तः पवित्रा रथा यानानि येषान्ते (हि) यतः (भूत) भवत (अयःशिप्राः) अय इव शिप्रे हनूनासिके येषामश्वानां तद्वन्तः (वाजिनः) वेगवन्तः (सुनिष्काः) शोभनानि निष्कानि सुवर्णमयान्याभूषणानि येषान्ते (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्यवतो राज्ञः (सूनो) अपत्य (शवसः) बलवतः (नपातः) अविद्यमानाऽधःपतनस्य (अनु) (वः) (चेति) विज्ञायते (अग्रियम्) अग्रे भवं सुखम् (मदाय) आनन्दाय ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषा ! भवन्तो विस्तीर्णबलाः सेनाङ्गसहिता ऐश्वर्य्यालङ्कृता राज्याऽऽनन्दवृद्धये पुरुषार्थं कुर्वन्तु यतः शत्रवो युष्मान् तिरस्कर्तुं न शक्नुयुः ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषांनो! तुम्ही अत्यंत बलयुक्त सेनांगांसह ऐश्वर्याने सुशोभित झालेल्या राज्याचा आनंद वाढविण्यासाठी पुरुषार्थ करा. ज्यामुळे शत्रूलोक तुमचा तिरस्कार करणार नाहीत. ॥ ४ ॥